कुंभ: रहस्य से भरी है नागा साधुओं की जिंदगी, खुद का ही करते हैं पिंडदान, जानें वजह
कुंभ: रहस्य से भरी है नागा साधुओं की जिंदगी, खुद का ही करते हैं पिंडदान, जानें वजह
कुंभ मेले की तैयारी शुरू हो गई है, और सबसे ज्यादा इसमें आकर्षण वाली चीज होती है, वो नागा साधु होते हैं. माना जाता है कि, नागा साधुओं का जीवन बाकी साधुओं की मुकाबले में सबसे ज्यादा कठिन होता है. इनका संबंध शैव परंपरा की स्थापना रिलेट किया जाता है. ऐसे जानके हैं इनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें…
13 अखाड़ों में शामिल होने वाले बनते हैं नागा साधु
कुंभ में सम्मिलित होने वाले 13 अखाड़ों में से सबसे ज्यादा नागा साधु जूना अखाड़े से द्वारा बनाए जाते हैं. लेकिन जो भी नागा साधु बनता है, उसे कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. उनकी और उनके पूरे परिवार के बारे में छानबीन की जाती है. यहां तक कि नागा बनन के लिए कई सालों तक उन्हें अपने गुरुओं की सेवा करनी पड़ती है. इसके साथ ही अपनी हर इच्छा को हमेशा के लिए मार देना पड़ता है.
इस तरह से बनते हैं नागा साधु
इतिहास में नागा साधु से जुड़े अस्तित्व के बारे में विस्तार से बताया गया है. जब भी नागा साधु बनते हैं, उसके लिए महाकुंभ के समय से सिलसिला शुकू हो जाता है. लेकिन इसके लिए पहले नागा बाबा बनने वाले लोगों को ब्रह्मचर्य से जुड़ी परीक्षा देनी पड़ती है. जिसके लिए 6 महीने से 12 साल तक का लंबा वक्त भी सामना करना पड़ जाता है. जब ब्रह्मचर्य से जुड़ी परीक्षा पास कर लेते हैं, इसके बाद शख्स को महापुरुष का स्थान दे दिया जाता है.
इसके लिए 5 गुरु भगवान शिव, भगवान विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश निर्धारित किए जाते हैं. यही नहीं इस प्रक्रिया के बाद नागा बाबाओं के बाल कटवा दिए जाते हैं. कुंभ मेला लगने के वक्त ऐसे लोगों को गंगा नंदी में 108 बार डुबकियां भी लगानी पड़ती है.
महापुरुष के बाद बनते हैं अवधूत
जब महापुरुष का दर्जा दिया जाता है, उसके बाद नागाओं की अवधूत बनने से जुड़ी सिलसिला शुरू हो जाता है. यही नहीं उन्हें खुद का ही श्राद्ध करने के बाद अपना ही पिंडदान करना पड़ता है. इस परंपरा को पूरा करने के लिए साधु बनने वाले लोगों को पूरे 24 घंटे तक बिना कपड़ों के अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा रहना पड़ता है. जब इस परीक्षा को वो पास कर लेते हैं, तब कहीं जाकर उन्हें नागा साधु की पदवी से नवाजा जाता है.
पूरे शरीर पर लगाते हैं मुर्दे की राख
नागा साधु के नाम से विथ्यात जितने भी साधु होते हैं वो सभी अपने शरीर पर किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करने के बाद लगाते हैं. यदि मुर्दे की राख नहीं मिलती है तो हवन की राख को अपने शरीर पर लगाते हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नागा साधुओं को केवल जमीन पर ही सोने की इजाजत दी जाती है. यहां तक कि वो गद्दे का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. नागा साधु के पद पर पहुंचने के बाद उन्हें हर एक नियम को मानना पड़ता है.
कुंभ मेले के खत्म होने के बाद ये सारे नागा बाबा अचानक से ही विलुप्त हो जाते हैं. माना जाता है कि, ये नागा साधु जंगल के रास्ते से देर रात यात्रा पर निकलते हैं. यही कारण है कि इन्हें कोई देख नहीं पाता है. नागा साधु वक्त-वक्त पर अपने स्थान को बदलते रहते हैं. इस कारण ये कहां रहते हैं इसका पता लगाना काफी मुश्किल हो जाता है. ऐसे लोग गुप्त जगह पर ही रहकर तपस्या करते हैं.