अव्यवस्थाओं और गड़बड़ियों के साथ सफर करने को क्यों मजबूर हैं यात्री?
कोरोना लगातार अपने पर फैल रहा है, लॉकडाउन भी अपने चौथे चरण में पहुंच गया है, सरकार सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर नई नई बातें कर रही है… वहीं लोग अपने घर जाने के लिए परेशान हैं… परेशानी का आलम कुछ ऐसा है कि इनकी बातें सुनकर रोंगटे खड़े हो जाएं, दर्द ऐसा की सुनकर आखें नम हो जाए, न खाने का जुगाड़ न रहने का ठिकाना जाएं तो कहां जाएं… किससे गुहार लगाएं… सरकार ने ट्रेनें तो चलवाईं लेकिन अव्यवस्थाओं और गड़बड़ियों सिलसिला ट्रेन की रफ्तार से ज्यादा है…
गड़बड़ियों का आलम ये है कि जिस ट्रेन को लोगों को महज 30 घंटे में उनकी मंजिल तक लेकर जाना था वो 4 दिन से चक्कर काट रही है… भूख, प्यास और गर्मी से बेहाल लोग बस सही सलामत घर पहुंचने की दुआ कर रहे हैं….लोगों का सब्र का बांध टूट रहा है अपने घपर पहुंचने की आस में निकले लोग रास्तों का खाक छान रहे हैं…
दरअसल, दिल्ली से बिहार के मोतिहारी जा रही ट्रेन चार दिन में समस्तीपुर पहुंची, जबकि यात्रा महज 30 घंटे की है. मजदूरों का कहना है कि उन्हें मोतिहारी का टिकट दिया गया है और ट्रेन पिछले 4 दिनों से उन्हे घुमा- घुमा कर ले जा रही है. लोगों का कहना है कि मुसीबत के वक्त वो घर लौट रहे हैं और अब ये सफर भी मुसीबत बन गई है….
अभी तो बस शुरुआत है अगर अव्यवस्थाओं और गड़बड़ियों सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो दिक्कतें खत्म होने की जगह बढ़ने वाली हैं