जिस अयोध्या मामले में आया ऐतेहासिक फैसला, क्या था वो पूरा विवाद
आज का दिन शायद इतिहास के पन्नों में शायद सुनहरे अक्षरों में लिखा जाए… अयोध्या पर इतना बड़ा फैसला अपने आप में किसी इतिहास से कम नहीं है… देश के सर्वच्च न्यायलय ने अयोध्या पर फैसला देकर इस विवाद पर हमेशा हमेशा के लिए पूर्ण विराम लगा दिया… चलिए आपको बता ते हैं क्या था पूरा विवाद
1528-29: कहते हैं बाबर ने मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनवाया
अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर एक मस्जिद बनवाया गया, जिसे हिंदू अपने आराध्य देव भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं. कहा जाता है कि मुगल राजा बाबर के सेनापति मीर बाकी ने यहां मस्जिद बनवाई थी, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था. बाबर 1526 में भारत आया. 1528 तक उसका साम्राज्य अवध (वर्तमान अयोध्या) तक पहुंच गया. इसके बाद करीब तीन सदियों तक के इतिहास की जानकरी किसी भी ओपन सोर्स पर मौजूद नहीं है.
1853: …जब पहली बार अयोध्या में दंगे हुए थे
कहा जाता है कि अयोध्या में इस मुद्दे को लेकर पहला हिंदू-मुस्लिम हिंसा की पहली घटना 1853 में हुई थी. जब निर्मोही अखाड़ा ने ढांचे पर दावा करते हुए कहा कि जिस स्थल पर मस्जिद खड़ा है. वहां एक मंदिर हुआ करता था. जिसे बाबर के शासनकाल में नष्ट किया गया. अगले 2 सालों तक इस मुद्दे को लेकर अवध में हिंसा भड़कती रही. फैजाबाद जिला गजट 1905 के अनुसार 1855 तक, हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही इमारत में पूजा या इबादत करते रहे.
1859: आजादी के पहले आंदोलन के बाद ब्रिटिश शासकों ने परिसर को बांट दिया
लेकिन 1857 में आजादी के पहले आंदोलन के चलते माहौल थोड़ा ठंडा पड़ गया. 1859 में ब्रिटिश शासकों ने मस्जिद के सामने एक दीवार बना दी गई. परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी गई.
1885: पहली बार जिला अदालत में पहुंचा यह विवादित मामला
मंदिर-मस्जिद विवाद ने कुछ सालों में इतना गंभीर और भयावह हो गया कि मामला पहली बार अदालत में गया. हिंदू साधु महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने की इजाजत मांगी, हालांकि अदालत ने ये अपील ठुकरा दी. इसके बाद से मामला गहराता गया और सिलसिलेवार तारीखों का जिक्र मिलता है.
1934: दंगों में क्षतिग्रस्त हुई थी मस्जिद की दीवार और गुंबद
इस साल फिर सांप्रदायिक दंगे हुए. इन दंगों में मस्जिद के चारों तरफ की दीवार और गुंबदों को नुकसान पहुंचा. ब्रिटिश सरकार ने इसका पुनर्निर्माण कराया.
1949: जब हिंदुओं ने कथित तौर पर मूर्ति स्थापित की, सरकार ने लगवाया ताला
भगवान राम की मूर्ति मस्जिद में पाई गई. कहा जाता है कि मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति हिंदुओं ने रखवाई. मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया और मस्जिद में नमाज पढ़ना बंद कर दिया. फिर दोनों पक्षों ने लोगों ने अदालत में मुकदमा दायर कर दिया. इसके बाद सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित कर ताला लगवा दिया.
1950: अदालत से भगवान राम की पूजा की इजाजत मांगी गई
गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में अपील दायर कर भगवान राम की पूजा कि इजाजत मांगी. महंत रामचंद्र दास ने मस्जिद में हिंदुओं द्वारा पूजा जारी रखने के लिए याचिका लगाई. इसी दौरान मस्जिद को ‘ढांचा’ के रूप में संबोधित किया गया.
1959-61: दोनों पक्षों ने विवादित स्थल के हक के लिए मुकदमा किया
1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल के हस्तांतरण के लिए मुकदमा किया. वहीं, मुसलमानों की तरफ से उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भई बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक के लिए मुकदमा कर दिया.
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1984: रामजन्मभूमि मुक्ति समिति का गठन किया गया
विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में हिंदुओं ने भगवान राम के जन्मस्थल को मुक्त करने और वहां राम मंदिर बनाने के लिए एक समिति का गठन किया. उसी समय गोरखपुर को गोरखनाथ धाम के महंथ अवैद्यनाथ ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनाई. अवैद्यनाथ ने अपने शिष्यों और लोगों से कहा था कि उसी पार्टी को वोट देना जो हिंदुओं के पवित्र स्थानों को मुक्त कराए. बाद में इस अभियान का नेतृत्व भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल लिया.
फरवरी 1986: ताला खोलने का आदेश हुआ, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनी
जिला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित स्थल के दरवाजे से ताला खोलने का आदेश दिया. मुसलमानों ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति/बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाई.