भूख ने इंसानो को खाया, जब चर्चिल ने भारत को भूखा मारा – Bengal Famine 1943
सुअरों और चूहों की तरह बच्चे पैदा करेंगे तो मरेंगे ही। मरने दो उनको”
ये शब्द है मानवीय मूल्यों को बचाने के लिए नॉवेल पुरस्कार पाने वाले तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के।
समय था 1943-44, भारत आज़ादी पाने के अंतिम चरण में था। भारत छोड़ो आंदोलन के चलते बड़े नेता जेल में थे। दूसरा विश्व युद्ध चरम पर था और मानवता आखिरी स्तर पर।
जिसका उदारहण भारत के बंगाल(वर्तमान बांग्लादेश भी), उड़ीसा, बिहार में देखने को मिला। यहाँ भयंकर अकाल पड़ा, “पड़ा” कहना गलत होगा असल में डलवाया गया ब्रिटेन सरकार द्वारा अपने हितों को साधने के लिए। ब्रिटेन सरकार ने अकाल की आग में घी डालने वाले फैसले लिए जैसे भारत में सभी खाने के समान मुख्यतः चावल के आयात(Import) पर रोक लगा दी फिर वर्मा(वर्तमान म्यांमार) पर जापान ने जीत हासिल करली और चावल आने के सभी विकल्प भी समाप्त हो गए । भारत की फसल पैदावार को ब्रिटेन सेना को भेजा जाने लगा और बचे हुए अनाज को भंडारण किया गया।
अकाल के कारण स्तिथि बद से बदतर होती गयी भूख से लोग बड़ी संख्या में मरने लगे। गलियों, सड़को, नालियों में शव पड़े रहते थे जिन्हें गिद्ध नोचा करते थे। जिंदा रहते हुए भी जानवरो ने कई घटनाओ में लोगो के खाया मगर वह भूख से बेदम थे विरोध तक न कर सके। शवों को हुगली नदी में बहाया जाने लगा जबकि लोग इसी नदी का पानी पीते थे इस वजह से महामारी भी बड़ी मात्रा में फैली।
लड़कियों और औरतों को एक समय के खाने के लिए बेचा जाने लगा। आधी बोरी चावल के लिए लोगो ने अपने सोने को बेचा। इसी दौर में भारत में मृत्यु दर 3 फीसदी तक बढ़ गयी और महँगाई 425 फीसदी तक।
भारतीय ब्रिटिश शासन ने ब्रिटेन सरकार से कई बार राहत देने की गुहार लगाई मगर प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कानों में रुई डाल रखी थी। जिसकी कीमत भारत ने 30लाख लोगो की निर्मम मृत्यु देकर चुकाई।
विंस्टन चर्चिल की सरकार ने इस खबर को भारत से बाहर आने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए मगर स्टेट्समैन अखबार द्वारा इसे प्रकाशित किया, जिससे ब्रिटेन की छवि को भारी नुकसान पहुँचा और बदनामी हुई। दुनिया भर के देशो ने भारत को आज़ाद करने के लिए ब्रिटेन पर दवाब बनाया ये भी 1947 में भारत के आज़ाद होने की एक वजह बनी।
Nirdesh Kudeshiya