आयोध्या… जहां राजनीति और धर्म का ऐसा ताना बाना बुना गया… कि यहां विध्वंस की एक नई कहानी लिख दी गई
आयोध्या… जहां राजनीति और धर्म का ऐसा ताना बाना बुना गया… कि यहां विध्वंस की एक नई कहानी लिख दी गई
आयोध्या… जहां राजनीति और धर्म का ऐसा ताना बाना बुना गया… कि यहां विध्वंस की एक नई कहानी लिख दी गई… और इसी विध्वंस ने ऐसा कलंक लगाया कि आजतक उसकी छाप साफ दिखाई देती हैं… ऐसा दर्द दिया जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है…
धर्म कोई भी हो इस विध्वंस की तस्वीर सबने एक जैसी ही देखी… तारीख थी 6 दिसंबर 1992 अयोध्या में बाबरी का विवादित ढांचा कुछ ही घंटों में ढहाकर वहां एक नया, अस्थायी मंदिर बना दिया गया… वहां एक ढांचा नहीं गिरा बल्कि एक लकीर खिंची जो आज तक मिट नहीं पाई…
उधर आयोध्या में एक ढांचा गिरा इधर पूरी राजनीति में उथल पुथल हो गई… यूपी में तो मानो भुचाल सा आ गया बीजेपी सत्ता में आई और कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा…इस विवाद ने देखते ही देखते एक ऐसे दानव का का रूप ले लिया जो सब कुछ निगल गया… सियासी गलियारों में तो आज भी ये मुद्दा जोरों से चल रहा है…
इस विवाद के समय कई ऐसे चेहरे सामने आए जिन्हें आज भी लोग याद करते हैं फिर चाहे बुरे या अच्छे तौर पर याद करें….
दरसल ये कहानी शुरु ही 1985 में जब राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद परिसर का ताला खोलने के आदेश दिया… और सारा पषाद शुरु हुआ… इसे और आगे ले गए लाल कृष्ण आडवाणी… सितंबर 1990 में उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए दक्षिण से अयोध्या तक 10 हजार किलोमीटर लंबी रथयात्रा शुरू की… जिसे बिहार में लालू प्रसाद की सरकार ने रोक दिया… लेकिन अब तो इसकी आग फैल चुकी थी… इस विवाद में और भी कई चेहरे सामने आए… और फिर 6 दिसंबर 1992 हजारों की संख्या में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी ढांचा गिरा दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया।
कहने को तो ये विवाद अभी कोर्ट के अंदर है लेकिन इसका असर राजनीति से आम जिंदगी में भी दिखता… ये ऐसी चर्चा है जो शायद इसके फैसले के बाद भी सालों साल तक लोगों के बीच होती रहेगी…
Pratiksha Srivastava